HOMEOPATHY:- शब्द दो ग्रीक शब्द होम्योज (HOMOIOS) याने सदृश (SIMILAR) और पैथोज (PATHOS) अर्थात दुख: भोग या रोग (SUFFERING) शब्दों से बना है। दोनों शब्दों का अर्थ हुआ सदृश रोग चिकित्सा। सदृश रोग चिकित्सा का सरल अर्थ है। जो रोग जिस औषध के सेवन से उत्पन्न हुआ, उसी रोग के लक्षणों में वही औषधि दो। उदाहरण के लिए, आप कच्चे प्याज को कांटे। थोड़ी देर प्याज काटने पर नाक और आंखों से पानी गिरने लगेगा। जुकाम जैसी स्थिति होगी इसी जुकाम में प्याज से बनी औषधि एलियम सीपा देनी पड़ती है। ऐसा दूसरा उदाहरण आप मिर्च खाइए अधिक मिर्च खाने से पेट में जलन होगी जब किसी रोगी के पेट में जलन हो तो मिर्च से बनी औषधि कैप्सिकम दो जलन मिट जाएगी। अतः होम्योपैथी में औषधि प्रयोग के लिए रोगी में जैसे रोग लक्षण देखो वैसे ही लक्षणों वाली औषधि रोगी को दे दो रोग दूर हो जाएगा। यह सिद्धांत " सम: सम शमयति" ( SIMILIA SIMILIBUS CURANTUR) कहलाता है।
औषधि प्रयोग:- होम्योपैथी में औषधि प्रयोग का नियम उपरोक्त वर्णित है।कैसा भी रोग हो, कोई भी रोग हो आप रोगी के परेशानियों से घबराए नहीं। ज्यो ही रोगी देखने को मिले, रोगी से रोग के हालत सुने जो कुछ कहता है, वह सब बातें ध्यान में रखते हुए औषधियां देने का काम करें, जिन औषधियों को बीमारी के अनुसार देने के लिए इस होम्योपैथिक लेख में बताई गई हैं। किसी ना किसी औषधि में जो कुछ रोगी ने कहा है, वह बातें ज्यों की त्यों मिल जाएंगी जिस औषधि में वह बातें मिले वही औषधि रोगी को दें। निश्चित तौर पर रोगी स्वस्थ हो जाएगा। इस प्रकार औषधि देना ही चिकित्सा का कर्तव्य है। होम्योपैथिक औषधियां शक्ति कृति दी जाती हैं नए रोगों में 6, 30 पावर की अवधि और पुराने रोगों में 200, 1000 आदि पावर की औषधि दें। होम्योपैथी में औषधि की मात्रा का कोई महत्व नहीं है रोगी को 5 या 10 गोली एक खुराक में देनी चाहिए नए रोगों में 5 से 6 बार प्रतिदिन देनी चाहिए और पुराने रोगों में एक दो बार औषधि देकर उससे होने वाले परिवर्तन को देखते रहना चाहिए। इस संबंध में पूर्ण ज्ञान के लिए आपको हमारे होम्योपैथिक लेखों को पढ़ना होगा।
दिनोंदिन होम्योपैथी लोकप्रिय होती जा रही है। ऐसा क्यों? इसका कारण है होम्योपैथी अत्यंत सरल चिकित्सा है। इसमें रूचि लेकर इसे सरलता से समझ सकते हैं चाहे कोई होम्योपैथी का बहुत विद्वान अनुभवी चिकित्सक हो जिसके पास अनेक सुंदर-सुंदर डिग्रियां हो या एक अत्यंत रुचि से स्वाध्यायी व्यक्ति हो, यदि वह डॉक्टर रोगी के रोग लक्षणों को औषधि के और रोग लक्षणों में पहचान लेता है, रोगी का चित्र और शादी में वर्णित लक्षणों में मिला लेता है तो वह एक सफल चिकित्सक है।
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